कही भी कोई घटना या हादसा हो पुलिस पहुचे या न पहुचे ,आपको हाथो में कैमरे लिए तमाम पत्रकार तुरंत मोके पर मिलेगे'। कई बार तो घटना बाद में होती है कैमरे पहले से मौजूद रहते है ।आखिर आप सोच रहे होगे मे क्यों कैमरों के पीछे पड़ा हु लेकिन ये एक कहानी से भी ज्यादा खतरनाक है ; कहानी हकीकत से ज्यादा कल्पना पर टिकी होती है, लेकिन मेरे खुद के अनुभव और हकीकत आज मेरे ही अस्तित्व पर सवाल खड़े कर जाते है, खुद से सवाल पूछते हुए भी मुझे संकोच होता है खबरों को बेचने के इस दौर मे खबरों को बनाते कई कैमरामेनो को जब देखता हू', तो उनसे ज्यादा दया चैनेलो के डेस्क पर बैठे लोगो पर आती है और जब ये सुनता हू की खबर बनाने वाला चैनल का पत्रकार पाचवी पास भी नहीं है तो कहने को कुछ भी नहीं रह जाता
बचपन का जिन्दगी पर असर पड़ना लाजमी है। मेरे परिवार का पत्रकारिता से कोई नाता कभी नहीं रहा परिवार तो छोडिये आस पास भी कोई नहीं जानता था की पत्रकारिता क्या होती है पापा को खबरों में इंटेरेस्ट था । इस लिए बचपन से ही रेडियो से मेरा परिचय रहा है घर में टी ।वी । नहीं था ,अख़बार दो दिन बाद पहुचता था ,लिहाजा रेडियो ही जरिया था आल इण्डिया व् बी ।बी। सी सुन कर मे बड़ा होता रहा स्कूल और रेडियो के संग चलते हुए एक दिन मैंने भी पत्रकार बन लोगो तक पहुचने व् उनकी बात उठाने की ठानी पापा हमेसा चाहते की में डॉक्टर बनू लेकिन मैंने कभी नहीं सोचा। खुद ही मास कॉमं में टेस्ट देकर चुने जाने के बाद क्लास भी शुरू कर दी तब मन मे सपने के पुरे होते हुए अहसास से मे खुस था
कोर्से ख़त्म होने से पहले ही मुझे नोकरी भी मिल गयी उत्तराखंड से निकलकर पहली बार मुझे मुरादाबाद से शुरुआत करने का मोका मिला। यही से मेरे सपनो के भरम का टूटना आरम्भ हुआ ; कैमरे चला कर लोगो को लुटते कई पत्रकारों से मेरा परिचय यही हुआ खबरों के लिए लोगो को पिटवाना हो या फिर किसी को टंकी पर आत्म हत्या का नाटक करने की सलाह देना हर कही खबर बनाते इन लोगो को मे देखता रहा धीरे धीरे शहर मे इनकी तादात दिन दुनी रातचौगुनी होती चली गयी आज के हालत पर लिखते हुए भी मुझे संकोच होता है हर गली मे आज टीवी का एक पत्रकार है। खुद को जबाब देते हुए कई बार मुझे महंगी कारो मे घूमते इन लोगो के अदभुत टैलेंट से ज्यादा इनके द्वारा ठगे लोगो की विवशता पर हसी आती है
अब आप सोचेगे की इनकी कमाई का जरिया क्या है ? दरअसल जिस गली मे ये रहते है ,वहा इनका ही जलवा होता है पुरे छेत्र मे पानी से लेकर बिजली के मामले हो या फिर राशन कार्ड ,बिना इनकी इजाजत के आगे नहीं बड़ते इनकी शुरआत शादीयो में कैमरा चला कर होती है इतना ही नहीं अखबारों मे भी ऐसे लोगो की तादात acchee खासी है आप किसी अधिकारी की प्रेस कांफ्रेस मे पहुच जाये ,वह आपको आधे कैमरामेन व् पत्रकार वो मिल जायेगे .जो अपराधिक रेकार्डो मे दर्ज है। कितना बड़ा मजाक है , लोगो की भावनाओ के साथ कल जिस व्यक्ति को पुलिस जेल भेज देती है वही जेल से निकलने केबाद पुलिस अधिकारियो से सवाल पूछता हुआ नजर आता है/ खबरों से ज्यादा ऐसे लोग कमाई का साधन खोजते है इतना ही नहीं किसी के घर मौत भी हो जाय तो खबर के नाम पर उससे भी पैसा लिया जाता है। आप कभी लोकल अखबारों की भाषा पर नजर डाले तो आप को पड़ते हुए भी शर्म आएगी अधिकारियो से इनके सम्बन्ध हमेसा ढाल का काम करते है ऐसे मे आज अगेर आम आदमी मीडिया को बिका हुआ कहता है तो क्या गलत है।
मीडिया का ये रूप मेरे लिए नया है जिस सोच के साथ मैंने काम करना शुरू किया था ,आज मुझे वही सोच परेशां भी करती है आप सोच रहे होंगे जब इतना गलत हो रहा है तो ,अधिकारी कदम क्यों नहीं उठाते ?दरअसल उनके लिए ऐसे लोग फायदे का सोदाहै । मुफ्त मे मुखबिर मिलना किसे बुरा लगेगा साथ ही कोंन अधिकारी क्या कर रहा है और किसने क्या नया सामान ख़रीदा इसकी जानकारी भी तो मिलती है आज पत्रकारिता की पहचान यही लोग है हालत ये हो गए है की अगर आप जनता से समस्याओ या किसी विषय पर राय पूछने जाओ तो राय देने से पहले जनता भी पैसो की डिमांड कर देती है भर्ती होने का कोई प्रोसेस नहीं पीतल नगरी का पीतल ऐसे लोगो को हमेसा ऑफिस से जोड़े रखता है।
हर घटना मे ऐसे लोग अपनी हाजरी जरूर लगाते है आखिर ऐसा कब तक चलेगा इसका जबाब किसी के पास नहीं कल तक किसी नए स्टुडेंट को मीडिया से जुड़ने के लिए कहते हुए मुझे खुसी होती थी आज मे उससे झूट नहीं बोलना चाहता हर कोई खामोश है .किसी के पास समाधान नहीं ऐसे मे दोष उनलोगो का भी है जो मीडिया संस्थान तो चला रहे है लेकिन पैसा देने से बचते है
मे हालत से परेसान हु ,निरासा भी हु , लेकिन मुझे विस्वास है एक दिन ये हालत बद्लेगे आज भी कई लोग है जो ऐसे हालत मे मुझे hosla देते है झूट ज्यादा दिनों तक नहीं चलता है दिल्ली के ऐ । सी ऑफिस मे बैठे लोग एक दिन जरूर अपने चयन पर दुखी होंगे अपराधियों और अन्पड़ो के हाथ मे माइक देकर किसकी लड़ाई ये लड़ रहे है इसका जबाब वक़्त एक दिन जरुर मागेगा साथ ही इन्हें जबाब उन लोगो को भी देना होगा जो इनकी वजह से सामाजिक मौत मर chuke है शाएद जबाब मुझे भी देना पड़े आखिर मे भी इसी दौर मे माइक पकडे हु, इसीलिए मे जबाब तैयार कर रहा हु
ये हकीकत है ; आप और मे सिर्फ इंतजार कर सकते है आप ये मत सोचियेगा की मेरे पास कार नहीं है ,इसलिए मे गुस्सा उत्तार रहा हु मेरे जैसे और भी कई लोग है जिनकी आत्मा सिर्फ पत्रकारिता मे बस्ती है मे सिर्फ उन लोगो को एक हकीकत बताना चाहता हु जो मेरी तरह सोच कर यहाँ आने की तैयारिया कर रहे है। आखिर सपनो के टूटने का मलाल तो होता ही है। आज भी मुझे पूरा यकीं है एक दिन कैमेरो के पीछे के आदमी भी कैमेरो के आगे के आदमी जैसा ही साफ दिखेगा क्योकि सवाल लोगो कई विस्वास का है ।
भुवन चन्द्र
मुरादाबाद
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