भारतीय सविधान ने जब लोक तंत्र को आत्मसात करने की सोची होगी तो शाएद डॉक्टर भीम राव ने कभी नहीं सोचा होगा की एक दिन संसद पहुचने वाले नेता अपने कामो व् जनता की सेवा की बदोलत नहीं बल्कि अपने ग्लेमर के कारन चुने जायेगे लोकतंत्र मे आज ग्लेमर का तड़का काम आ रहा हैजमीं व् लोगो से जुड़े नेता अब चुनाव नहीं लड़ते। रामपुर से जयापरदा या फिर मुरादाबाद से अजहर दोनों की जीत लोकतंत्र में विस्वास बढाती है .लेकिन खामियाजा सिर्फ यएहा की जनता को भुगतना पड़ता है मुरादाबाद से अजहर के चुनाव लड़ने से लेकर आज तक मे हमेशा लोगो की आखो में बदलते विचारो को पड़ने की कोसिस करता रहा हु क्या पाया क्या खोया इस हिसाब को लगाते लाखो लोगो की बात मे आपसे नहीं करुगा आपको सिर्फ वोट देने गए उन रिक्सा चालको और पीतल कारीगरों से मिलाना चाहुगा जो ग्लेमर से उम्मीद लगाये बैठे है
मुरादाबाद से अजहर के चुनाव लड़ने से पहले प्रियंका गांधी के चुनावी मैदान में उतरने की खबर आई थी प्रियंका का ससुराल भी मुरादाबाद है कांग्रेसियों से जब जानना चाह तो हर कोई खुस नजर आया खुसी प्रियंका के चुनाव लड़ने से ज्यादा इस बात की थी की चलो टिकट किसी लोकल नेता को तो नहीं मिलेगा खेर प्रियंका नहीं लड़ी और चुनावी मैदान में क्रिकेट से आये अजहर उत्तर पड़े पहली बार जब अजहर लोगो से मिलने मुरादाबाद आये तो शहर की सडको पर खुद पुलिस के अधिकारी लोगो को सँभालते नजर आये अजहर भी सबसे मिले कुछ दिनों बाद उनकी पत्नी संगीता भी शहर में पहुची जहा भी अजहर जाते लोगो का हुजूम उन्हें देखने मोजूद रहता .अजहर दिन बहर लोगो संग रैल्लिया करते और उनकी पत्नी महिलाओ संग बाजारों मे गरीबो को वोट देने की अपील करती पति का साथ देती रही इसी दौरान मुझे भी तमाम लोगो की राय जानने व् अजहर की नयी पारी की ओपनिंग का भविष्य जानने का मोका मिलता रहा। क्रिकेट से मेरा लगाव रहा है और अजहर को खेलते भी मैंने कई बार देखा था। तेज गेदबाजो से ज्यादा अजहर को स्पिन होती गेदे पसंद रही है मुरादाबाद मे उन्हें राजनीती के बौंसर झेलने पड़े लेकिन चुनाव लड़ाने आन्ध्र से पहुची टीम उनका साथ देती रही। एक बार मैंने पीतल कारीगरों से लोक सभा चुनाव पर उनकी राय जानने के लिए इंटर वीउह किया कारीगरों के बीच निरासा और हतासा थी नेताओ से उन्हें कोई उम्मीद नहीं रह गयी थी । लेकिन सारे लोग अजहर पर एक बार विश्वास कर खुद को आजमाने की सोच रहे थे अजहर भी उन्हें होसला देते रहे चुनाव जितने के लिए ऐ .सी को छोड़ अजहर रिक्से की सवारी करने लगे थे । वाकई जनता को लगने लगा २५ साल बाद सही कांग्रेस ने उनका भला करने की ठान तो ली
khair चुनाव हुआ और अजहर के साथ रामपुर से सपा की नाक का सवाल बनी जया परदा भी चुनाव जीत गयी आंध्र के २ सितारे पश्चिमी उत्तर परदेश मे लोगो के नेता बन गए । लोक तंत्र की ताकत सबको पता चल गयी। अब बारी अजहर व् जया की थी / चुनावी नतीजा आने की रात ही अजहर देहली रवाना हो गए मीडिया से बात उनकी नहीं हुई उनके जितने की खुसी मे लोग रात भर पत्ताखे फोड़ खुसी मनातेरहे हर किसी वोट देने वाले करिगोर को लगा की अब सुख भरे दिन आ ही गए
आज एक साल का वक़्त गुजरने वाला है अजहर का मुरादाबाद से नाता सिर्फ धार्मिक तयोहारो तक ही रह गया है। इएद ,दीपा वाली, oर क्रिस मस पर संसद शहर मे होते है लेकिन कोंग्रेस के राज्य सरकार ke खिलाफ धरने से अजहर नदारद ही रहते है आज शहर में अजहर के आने की खबर लोगो को सिहरन नहीं देती है। उनके पास कितनी समस्याए आती है । कितनी सुलझती है इसका कोई जबाब नहीं। मीडिया का जोर अजहर के वादों पर जबाब मागने से ज्यादा भारतीय क्रिकेट टीम के पर्दर्शन पर राय जानना होता है ऐसे में आज जब चार लेन की सड़क का उदघाटनकरने अजहर शहर में आते है तो पंडाल में खली पड़ी कुर्सिया kuch कहती नजर आती है। हो सकता है की ये सिर्फ मेरा भरम हो लेकिन लोगो के खोखले होते विश्वास को आप भी जानते है।
भारत में आज सिर्फ ५०-६०/ मतदाता ही वोट देते है आम आदमी की संख्या यहाँ भी ज्यादा है अजहर के पास आज बहुत काम हो सकता है। लेकिन जिस जनता ने उन्हें जिताया उनकी क्या गलती है। बात सिर्फ अजहर की ही नहीं है और भी कई नेता है जो सिनेमा क्रिकेट और टीवी की दुनिया से राजनीती में आये है नेताओ की वादा खिलाफी का फायदा इन चेहरों को मिला लेकिन ये तो नेताओ से भी दो हाथ आगे है; ऐसे में लोक तंत्र से अगर रिक्सा चलाने वाले अहमद भाई या फिर पीतल पर दस्तकारी करने वाले अब्बास या नरेश का भरोसा टूटता है तो नुकसान किसे होगा ; आखिर वोट डालने तो यही जाते है आज चुनाव जितने के बाद इन ग्लेमर चेहरों के पास वक़्त नहीं लेकिन वोट मागते समय वक़्त की कमी नहीं थी; आज अजहर शहर मे एक रात रुकना पसंद नहीं करते लेकिन तब वो यही घर बना कर रहने की बात करते थे....
कुल मिला कर मेरा सोचना ये है की पार्टियों को एक बार फिर नेताओ को देखना चाहिए आज जनता इन नेताओ से सवाल भी पूछना चाहे तो उसे आंध्र तक जाना पड़ेगा साथ ही वहा सांसद मिले इस बात की गारंटी नहीं ; ऐसे में कोई लोकल नेता हो तो कम से कम उसके ghar के बाहर नारे लगा कर गुस्सा तो उत्तारलेगी ; एहा तो नारे भी नहीं लगा सकते ,निजी गार्ड जो साथ है
आप जरूर इस बारे मे सोचिये क्योकि लोक तंत्र की ताकत जिन लोगो में है उनका होसला ग्लेमर चेहरे तोड़ रहे है;
भुवन चन्द्र
मुरादाबाद ..............................................
Monday, February 22, 2010
राजनीती में ग्लेमर नहीं नेता ही चलते है| ये सब कहते है लेकिन ये जीतते कैसे है............
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