Wednesday, September 26, 2012

पैसा पेड़ और प्रधानमन्त्री,,,,,,,,,,,,, 



ये वक्त वाकई बदलाव का है| लेकिन सामाजिक बन्धनों से जुड़े होने के चलते ना जाने क्यू हम बदलना ही नही चाहते | याद कीजिये जब आप घरवालो से पैसे मांगते होगे तो वही जबाब आपको भी मिलता होगा पैसे पेड़ पर नही उगते | लेकिन आपने हमने और किसी ने ये माना ही नही नतीजा सबके सामने है |इस वाक्य को सुनते-सुनते और इस उम्मीद मे की कही पैसा पेड़ो पर ही तो नही लगता हिंदुस्तान के लाखो पेड़ काट दिए गए| हालत तो यहाँ तक हो गये की जंगल बचाने के लिए महिलाओ को चिपको आन्दोलन का सहारा लेना पड़ा| इन्ही कटते 
पेड़ो की टूटती शाखाओ को थामे देश मे वन्य प्रेमियों की लहलहाती फसल भी उग खड़ी हुई | इस फसल को सरकारी पुरस्कारों की खाद और एनजीओ का पानी खूब रास आया,लेकिन पेड़ो की खोटी किस्मत उन्हें तो कटने के लिए ही बनया गया था| लेकिन कल हालत कुछ ऐसे हो गये जैसे सचिन के सोवे शतक के लगते ही उनके सन्यास की अटकलों पर विराम लग गया | हमेशा खामोश रहने वाले और जरुरत पड़ने पर अग्रेजी मे बोलने वाले हमारे प्रधान मंत्री ने भी कल हिंदी मे कह दिया की पैसे पेड़ पर नही लगते | अब तो मान लो यार की वाकई पैसे पेड़ पर नही लगते | देश के सबसे बड़े अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह आजकल पर्यावरण प्रेमी हो गये है तभी तो उन्होंने पैसो से ज्यादा पेड़ो को अहमियत दी | पैसा तो कही भी उग सकता है | क्या हुआ पेड़ पर नही उगा? टू-जी में उगता है,कोयले मे उगता है,खेल के मैदानों मे उगता है,सेना के सामानों की खरीद मे उगता है,सरकार बनाने और बिगड़ने मे उगता है, आप मान लीजिये की पेड़ के सिवा हर कही उगता है| अब इसमें बेचारे पेड़ो का क्या कसूर | देश मे वैसे ही पेड़ो की संख्या लगातार कम हो रही है भूमाफियाओ के हाथो हर रोज पेड़ो को काटकर अरबो रूपये की जमीन बने और बेचीं जा रही है ऐसे मे प्रधानमंत्री के इस एक वाक्य ने पेड़ो की वैसा ही जीवनदान दे दिया जैसे उन्हें ममता के जाने के बाद माया -मुलायम ने दे रखा है| या फिर कह ले की सहवाग को चयन कर्ताओ ने दे रखा है धोनी की नाराजगी के बाद भी| अब चिपको आन्दोलन की जरुरत नही रह जाएगी और ना ही जंगलो को बचाने के लिए किसी वन्य प्रेमी की | क्यूकी जब पैसा पेड़ो पर नही लगता तो पेड़ काट कर फायदा क्या? अब पेड़ भी बचेगे साथ ही पैसा कहा उगता है इसके के विकल्प भी लोगो के पास यूपीए सरकार ने दिए है ,वन्य प्रेमियों को दिए जाने वाले पुरुस्कार और जंगल बनाने के साथ ही पेड़ लगाने वाले अनुदानों का पैसा भी बच जाएगा| देश मे जंगल बढ़ेगे तो रास्ट्रीय मीडिया इसे सुर्खिया बनाएगा फिर लोग बोफ़ोर्स और टू-जी की तरह कोयले और महगाई को भूल जायेगे| सारा देश जश्न मे डूबा रहेगा | अन्ना हजारे केजरीवाल की पार्टी पर नजर रखेगे तो केजरीवाल पार्टी के फंड जुटाने के लिए रामदेव से मुलाकात कर रहे होगे| देश मे नए राजनैतिक समीकरण बनेगे | सिलेंडर की जगह लकडिया ले लेगी और लोग भूल जायेगे की उन्हें सिर्फ छ सिलेंडर मिल रहे है| प्रधानमंत्री फिर खामोश हो जायेगे अगली बार कोई मुद्दा उठेगा तो फिर किसी और कहावत को हिंदी मे कह कर देश मे खुशहाली ले आयेगे | ममता भी रायटर बिल्डिंग के बहार हरियाली देखकर मुस्कराएगी और वाम दलों से रूठी रहेगी| सवाल ये की आप और हम क्या करेगे,हमने आज तक कुछ किया है जो अब करेगे हा लेकिन तब तक इन्तजार करेगे जब तक पैसे पेड़ो पर नही उग जाते .....

Friday, March 5, 2010

शरद जोशी का लापतागंज लापता है ............

 ..टी. वी . पर हास्य और सनसनी बेचने के इसे दौर में लापतागंज भले ही अपवाद हो सकता है | लेकिन आम आदमी की जिन्दगी की ये सच्चाई भी है...शरद जोशी की हास्य कहानियो से निर्मित सब टी.वी. की ये पेश कश अश्लील हास्य के दौर में सकून दे जातीहै|  मुकुन्दी , कछुवा , बिजी पांडे, मिस्री मौसी , और सरुली के किरदार हमें खुद के होने का जो अहसास कराते है | उसे आप कभी नहीं नकार सकते है | सिस्टम से लड़ते लापतागंज के लोग और एक दुसरे के साथ भारतीय जीवन जीते है | शरद जोशी ने जिस बेबाकी से लोगो को सामने रखा है ,वो अपने आप में १ लेखक की पैनी नजरो का होना दिखाता है, | आज के आधुनिक कहे जाने वाले इसे दौर में भला कोन इंकार करेगा की लापतागंज हमारे आस -पास नहीं है,|
लापतागंज को टी.वी. पर देखते हुए हेर एपिसोड अपने आस पास की घटना से जोड़ देता है |मध्यम वर्गीय परिवारों की समस्याए हो या फिर उनके विस्वास को जिन्दा होते देखना , हर किरदार का लोगो से जुड़कर अपनी बात रखने का तरीका इन कहानियो की ताकत है....केबिल टी.वी और नेट के इसे दौर में बच्चो को जब पंचतंत्र की कहानिया  पड़ने को न मिले तो लापतागंज १ उम्मीद जगाता है..... आपको जब भी मौका मिले १ बार लापता होते हुए शरद जोशी के इसे गंज को आप भी देखिये .......हास्य का असल मकसद शाएद यही मिल जाय|.........................................................................................भुवन चन्द्र 

Tuesday, February 23, 2010

कैमेरो के आगे चमक .पीछे अँधेरा ;................विस्वास ही नहीं होता, लेकिन सच है दोस्त ? सच है

कही भी कोई घटना या हादसा हो पुलिस पहुचे या न पहुचे ,आपको हाथो में कैमरे लिए तमाम पत्रकार तुरंत मोके पर मिलेगे'। कई बार तो घटना बाद में होती है कैमरे पहले से मौजूद रहते है ।आखिर आप सोच रहे होगे मे क्यों कैमरों के पीछे पड़ा हु लेकिन ये एक कहानी से भी ज्यादा खतरनाक है ; कहानी हकीकत से ज्यादा कल्पना पर टिकी होती है, लेकिन मेरे खुद के अनुभव और हकीकत आज मेरे ही अस्तित्व पर सवाल खड़े कर जाते है, खुद से सवाल पूछते हुए भी मुझे संकोच होता है खबरों को बेचने के इस दौर मे खबरों को बनाते कई कैमरामेनो को जब देखता हू', तो उनसे ज्यादा दया चैनेलो के डेस्क पर बैठे लोगो पर आती है और जब ये सुनता हू की खबर बनाने वाला चैनल का पत्रकार पाचवी पास भी नहीं है तो कहने को कुछ भी नहीं रह जाता
बचपन का जिन्दगी पर असर पड़ना लाजमी है। मेरे परिवार का पत्रकारिता से कोई नाता कभी नहीं रहा परिवार तो छोडिये आस पास भी कोई नहीं जानता था की पत्रकारिता क्या होती है पापा को खबरों में इंटेरेस्ट था । इस लिए बचपन से ही रेडियो से मेरा परिचय रहा है घर में टी ।वी । नहीं था ,अख़बार दो दिन बाद पहुचता था ,लिहाजा रेडियो ही जरिया था आल इण्डिया व् बी ।बी। सी सुन कर मे बड़ा होता रहा स्कूल और रेडियो के संग चलते हुए एक दिन मैंने भी पत्रकार बन लोगो तक पहुचने व् उनकी बात उठाने की ठानी पापा हमेसा चाहते की में डॉक्टर बनू लेकिन मैंने कभी नहीं सोचा। खुद ही मास कॉमं में टेस्ट देकर चुने जाने के बाद क्लास भी शुरू कर दी तब मन मे सपने के पुरे होते हुए अहसास से मे खुस था
कोर्से ख़त्म होने से पहले ही मुझे नोकरी भी मिल गयी उत्तराखंड से निकलकर पहली बार मुझे मुरादाबाद से शुरुआत करने का मोका मिला। यही से मेरे सपनो के भरम का टूटना आरम्भ हुआ ; कैमरे चला कर लोगो को लुटते कई पत्रकारों से मेरा परिचय यही हुआ खबरों के लिए लोगो को पिटवाना हो या फिर किसी को टंकी पर आत्म हत्या का नाटक करने की सलाह देना हर कही खबर बनाते इन लोगो को मे देखता रहा धीरे धीरे शहर मे इनकी तादात दिन दुनी रातचौगुनी होती चली गयी आज के हालत पर लिखते हुए भी मुझे संकोच होता है हर गली मे आज टीवी का एक पत्रकार है। खुद को जबाब देते हुए कई बार मुझे महंगी कारो मे घूमते इन लोगो के अदभुत टैलेंट से ज्यादा इनके द्वारा ठगे लोगो की विवशता पर हसी आती है
अब आप सोचेगे की इनकी कमाई का जरिया क्या है ? दरअसल जिस गली मे ये रहते है ,वहा इनका ही जलवा होता है पुरे छेत्र मे पानी से लेकर बिजली के मामले हो या फिर राशन कार्ड ,बिना इनकी इजाजत के आगे नहीं बड़ते इनकी शुरआत शादीयो में कैमरा चला कर होती है इतना ही नहीं अखबारों मे भी ऐसे लोगो की तादात acchee खासी है आप किसी अधिकारी की प्रेस कांफ्रेस मे पहुच जाये ,वह आपको आधे कैमरामेन व् पत्रकार वो मिल जायेगे .जो अपराधिक रेकार्डो मे दर्ज है। कितना बड़ा मजाक है , लोगो की भावनाओ के साथ कल जिस व्यक्ति को पुलिस जेल भेज देती है वही जेल से निकलने केबाद पुलिस अधिकारियो से सवाल पूछता हुआ नजर आता है/ खबरों से ज्यादा ऐसे लोग कमाई का साधन खोजते है इतना ही नहीं किसी के घर मौत भी हो जाय तो खबर के नाम पर उससे भी पैसा लिया जाता है। आप कभी लोकल अखबारों की भाषा पर नजर डाले तो आप को पड़ते हुए भी शर्म आएगी अधिकारियो से इनके सम्बन्ध हमेसा ढाल का काम करते है ऐसे मे आज अगेर आम आदमी मीडिया को बिका हुआ कहता है तो क्या गलत है।
मीडिया का ये रूप मेरे लिए नया है जिस सोच के साथ मैंने काम करना शुरू किया था ,आज मुझे वही सोच परेशां भी करती है आप सोच रहे होंगे जब इतना गलत हो रहा है तो ,अधिकारी कदम क्यों नहीं उठाते ?दरअसल उनके लिए ऐसे लोग फायदे का सोदाहै । मुफ्त मे मुखबिर मिलना किसे बुरा लगेगा साथ ही कोंन अधिकारी क्या कर रहा है और किसने क्या नया सामान ख़रीदा इसकी जानकारी भी तो मिलती है आज पत्रकारिता की पहचान यही लोग है हालत ये हो गए है की अगर आप जनता से समस्याओ या किसी विषय पर राय पूछने जाओ तो राय देने से पहले जनता भी पैसो की डिमांड कर देती है भर्ती होने का कोई प्रोसेस नहीं पीतल नगरी का पीतल ऐसे लोगो को हमेसा ऑफिस से जोड़े रखता है।
हर घटना मे ऐसे लोग अपनी हाजरी जरूर लगाते है आखिर ऐसा कब तक चलेगा इसका जबाब किसी के पास नहीं कल तक किसी नए स्टुडेंट को मीडिया से जुड़ने के लिए कहते हुए मुझे खुसी होती थी आज मे उससे झूट नहीं बोलना चाहता हर कोई खामोश है .किसी के पास समाधान नहीं ऐसे मे दोष उनलोगो का भी है जो मीडिया संस्थान तो चला रहे है लेकिन पैसा देने से बचते है
मे हालत से परेसान हु ,निरासा भी हु , लेकिन मुझे विस्वास है एक दिन ये हालत बद्लेगे आज भी कई लोग है जो ऐसे हालत मे मुझे hosla देते है झूट ज्यादा दिनों तक नहीं चलता है दिल्ली के ऐ । सी ऑफिस मे बैठे लोग एक दिन जरूर अपने चयन पर दुखी होंगे अपराधियों और अन्पड़ो के हाथ मे माइक देकर किसकी लड़ाई ये लड़ रहे है इसका जबाब वक़्त एक दिन जरुर मागेगा साथ ही इन्हें जबाब उन लोगो को भी देना होगा जो इनकी वजह से सामाजिक मौत मर chuke है शाएद जबाब मुझे भी देना पड़े आखिर मे भी इसी दौर मे माइक पकडे हु, इसीलिए मे जबाब तैयार कर रहा हु
ये हकीकत है ; आप और मे सिर्फ इंतजार कर सकते है आप ये मत सोचियेगा की मेरे पास कार नहीं है ,इसलिए मे गुस्सा उत्तार रहा हु मेरे जैसे और भी कई लोग है जिनकी आत्मा सिर्फ पत्रकारिता मे बस्ती है मे सिर्फ उन लोगो को एक हकीकत बताना चाहता हु जो मेरी तरह सोच कर यहाँ आने की तैयारिया कर रहे है। आखिर सपनो के टूटने का मलाल तो होता ही है। आज भी मुझे पूरा यकीं है एक दिन कैमेरो के पीछे के आदमी भी कैमेरो के आगे के आदमी जैसा ही साफ दिखेगा क्योकि सवाल लोगो कई विस्वास का है ।
भुवन चन्द्र
मुरादाबाद

Monday, February 22, 2010

राजनीती में ग्लेमर नहीं नेता ही चलते है| ये सब कहते है लेकिन ये जीतते कैसे है............

भारतीय सविधान ने जब लोक तंत्र को आत्मसात करने की सोची होगी तो शाएद डॉक्टर भीम राव ने कभी नहीं सोचा होगा की एक दिन संसद पहुचने वाले नेता अपने कामो व् जनता की सेवा की बदोलत नहीं बल्कि अपने ग्लेमर के कारन चुने जायेगे लोकतंत्र मे आज ग्लेमर का तड़का काम आ रहा हैजमीं व् लोगो से जुड़े नेता अब चुनाव नहीं लड़ते। रामपुर से जयापरदा या फिर मुरादाबाद से अजहर दोनों की जीत लोकतंत्र में विस्वास बढाती है .लेकिन खामियाजा सिर्फ यएहा की जनता को भुगतना पड़ता है मुरादाबाद से अजहर के चुनाव लड़ने से लेकर आज तक मे हमेशा लोगो की आखो में बदलते विचारो को पड़ने की कोसिस करता रहा हु क्या पाया क्या खोया इस हिसाब को लगाते लाखो लोगो की बात मे आपसे नहीं करुगा आपको सिर्फ वोट देने गए उन रिक्सा चालको और पीतल कारीगरों से मिलाना चाहुगा जो ग्लेमर से उम्मीद लगाये बैठे है

मुरादाबाद से अजहर के चुनाव लड़ने से पहले प्रियंका गांधी के चुनावी मैदान में उतरने की खबर आई थी प्रियंका का ससुराल भी मुरादाबाद है कांग्रेसियों से जब जानना चाह तो हर कोई खुस नजर आया खुसी प्रियंका के चुनाव लड़ने से ज्यादा इस बात की थी की चलो टिकट किसी लोकल नेता को तो नहीं मिलेगा खेर प्रियंका नहीं लड़ी और चुनावी मैदान में क्रिकेट से आये अजहर उत्तर पड़े पहली बार जब अजहर लोगो से मिलने मुरादाबाद आये तो शहर की सडको पर खुद पुलिस के अधिकारी लोगो को सँभालते नजर आये अजहर भी सबसे मिले कुछ दिनों बाद उनकी पत्नी संगीता भी शहर में पहुची जहा भी अजहर जाते लोगो का हुजूम उन्हें देखने मोजूद रहता .अजहर दिन बहर लोगो संग रैल्लिया करते और उनकी पत्नी महिलाओ संग बाजारों मे गरीबो को वोट देने की अपील करती पति का साथ देती रही इसी दौरान मुझे भी तमाम लोगो की राय जानने व् अजहर की नयी पारी की ओपनिंग का भविष्य जानने का मोका मिलता रहा। क्रिकेट से मेरा लगाव रहा है और अजहर को खेलते भी मैंने कई बार देखा था। तेज गेदबाजो से ज्यादा अजहर को स्पिन होती गेदे पसंद रही है मुरादाबाद मे उन्हें राजनीती के बौंसर झेलने पड़े लेकिन चुनाव लड़ाने आन्ध्र से पहुची टीम उनका साथ देती रही। एक बार मैंने पीतल कारीगरों से लोक सभा चुनाव पर उनकी राय जानने के लिए इंटर वीउह किया कारीगरों के बीच निरासा और हतासा थी नेताओ से उन्हें कोई उम्मीद नहीं रह गयी थी । लेकिन सारे लोग अजहर पर एक बार विश्वास कर खुद को आजमाने की सोच रहे थे अजहर भी उन्हें होसला देते रहे चुनाव जितने के लिए ऐ .सी को छोड़ अजहर रिक्से की सवारी करने लगे थे । वाकई जनता को लगने लगा २५ साल बाद सही कांग्रेस ने उनका भला करने की ठान तो ली

khair चुनाव हुआ और अजहर के साथ रामपुर से सपा की नाक का सवाल बनी जया परदा भी चुनाव जीत गयी आंध्र के २ सितारे पश्चिमी उत्तर परदेश मे लोगो के नेता बन गए । लोक तंत्र की ताकत सबको पता चल गयी। अब बारी अजहर व् जया की थी / चुनावी नतीजा आने की रात ही अजहर देहली रवाना हो गए मीडिया से बात उनकी नहीं हुई उनके जितने की खुसी मे लोग रात भर पत्ताखे फोड़ खुसी मनातेरहे हर किसी वोट देने वाले करिगोर को लगा की अब सुख भरे दिन आ ही गए

आज एक साल का वक़्त गुजरने वाला है अजहर का मुरादाबाद से नाता सिर्फ धार्मिक तयोहारो तक ही रह गया है। इएद ,दीपा वाली, oर क्रिस मस पर संसद शहर मे होते है लेकिन कोंग्रेस के राज्य सरकार ke खिलाफ धरने से अजहर नदारद ही रहते है आज शहर में अजहर के आने की खबर लोगो को सिहरन नहीं देती है। उनके पास कितनी समस्याए आती है । कितनी सुलझती है इसका कोई जबाब नहीं। मीडिया का जोर अजहर के वादों पर जबाब मागने से ज्यादा भारतीय क्रिकेट टीम के पर्दर्शन पर राय जानना होता है ऐसे में आज जब चार लेन की सड़क का उदघाटनकरने अजहर शहर में आते है तो पंडाल में खली पड़ी कुर्सिया kuch कहती नजर आती है। हो सकता है की ये सिर्फ मेरा भरम हो लेकिन लोगो के खोखले होते विश्वास को आप भी जानते है।

भारत में आज सिर्फ ५०-६०/ मतदाता ही वोट देते है आम आदमी की संख्या यहाँ भी ज्यादा है अजहर के पास आज बहुत काम हो सकता है। लेकिन जिस जनता ने उन्हें जिताया उनकी क्या गलती है। बात सिर्फ अजहर की ही नहीं है और भी कई नेता है जो सिनेमा क्रिकेट और टीवी की दुनिया से राजनीती में आये है नेताओ की वादा खिलाफी का फायदा इन चेहरों को मिला लेकिन ये तो नेताओ से भी दो हाथ आगे है; ऐसे में लोक तंत्र से अगर रिक्सा चलाने वाले अहमद भाई या फिर पीतल पर दस्तकारी करने वाले अब्बास या नरेश का भरोसा टूटता है तो नुकसान किसे होगा ; आखिर वोट डालने तो यही जाते है आज चुनाव जितने के बाद इन ग्लेमर चेहरों के पास वक़्त नहीं लेकिन वोट मागते समय वक़्त की कमी नहीं थी; आज अजहर शहर मे एक रात रुकना पसंद नहीं करते लेकिन तब वो यही घर बना कर रहने की बात करते थे....

कुल मिला कर मेरा सोचना ये है की पार्टियों को एक बार फिर नेताओ को देखना चाहिए आज जनता इन नेताओ से सवाल भी पूछना चाहे तो उसे आंध्र तक जाना पड़ेगा साथ ही वहा सांसद मिले इस बात की गारंटी नहीं ; ऐसे में कोई लोकल नेता हो तो कम से कम उसके ghar के बाहर नारे लगा कर गुस्सा तो उत्तारलेगी ; एहा तो नारे भी नहीं लगा सकते ,निजी गार्ड जो साथ है

आप जरूर इस बारे मे सोचिये क्योकि लोक तंत्र की ताकत जिन लोगो में है उनका होसला ग्लेमर चेहरे तोड़ रहे है;

भुवन चन्द्र

मुरादाबाद ..............................................

Wednesday, February 17, 2010

राहुल कास मरजीना से मिल लेते या फिर किसी को भेज देते.......

याद कीजिये लोक सभा चुनाव से पहले का संसद मे राहुल गाँधी का भाषण । पूरा देश नयूक्लर डील पर माथा पकडे था और राहुल लोगो का परिचय महारास्त्र की कलावती से करा रहे थे कोंग्रेस को कलावती के सहारे किसानो में वोट की फसल दिख रही थी। कलावती के नाम का असर था या फिर लोगो का विस्वास सत्ता में कोंग्रेस आई और क्या खूब आई ।, राहुल के युवा नेतृतव ने मनो जादू कर दिया ..अब बारी २०१२ के उत्तर परदेश चुनावो की है , दिली के संसद भवन का रास्ता यू पी से ही हो कर जाता है ऐसे मे राहुल को यू पी मे भी १ कलावती की जरुरत होगी राहुल मै १ ऐसी ही कलावती को जानता हूँ vअक्त मिले तो आप इसे जरूर मिलना नहीं तो कम से कम अपने क्रिक्केटर संसद को तो भेजना

१ बंद कमरे के मकान में रहती हे ये कलावती माफ़ कीजियेगा इसका नाम मरजीना है पीतल नगरी के नाम से मशहुर मुरादाबाद के रतन पुर मोहल्ले मै पाच भाई बहिनों के साथ जिन्दगी गुजार रही मरजीना के सर पर किसी का साया नही कमरे के १ कोने मे गेहू की रास्ते से उठा कर लायी बाल्लिया रखी है लेकिन उनसे आटा कैसे बनेगा कोई नही जानता मरजीना की उमर महज १४ साल है बाकि भाई बहिन उससे छोटे है १ साल पहले मुझसे मरजीना की मुलाकात हुई दुनिया भले ही उसे १४ साल की लड़की मानती हो लेकिन मैंने उसमे १ अनुभवी महिला को देखा । उसके हालत देख मैंने उसके परिवार के बारे मे पूछा, तो पता चला २ साल पहले उसके मजदूर माता पिता दुनिया के भरोसे उसे छोड़ दुनिया से विदा हो गए अब५ भाई बहिनों का सहारा मरजीना है. कैमरे के सामने बोलते हुए उसकी आखो के आसू मुझे भी परेसान कर रहे थे ॥ सवालों के जबाब सुन जब में चुप हो गया तो मरजीना खुद ही बोल पड़ी । जानते हो सर मेरा गाव ambedkar ग्राम है लेकिन मेरी उमर १८ साल नहीं है इसे लिए मुझे इन्द्रा आवास नहीं मिला जिस दिन वोट डालने जाऊगी मेरा भी नंबर आ जायेगा ।
मरजीना के सबसे छोटे भाई की उमर महज ३ साल है .दिन में मरजीना ईट के भट्टे पर मजदूरी करती है महज ४० रुपये पुरे घर को चला रहे है। ऐसे में मरजीना भाई के चाय मागने पर उसे महज गर्म पानी देकर चुप कराती हैमैंने मरजीना को बहुत जानने की कोसिस की ..लेकिन उसकी आखो का दर्द उसकी जुबान पर भारी पड जाता था मायावती के सपनो के गाव में मरजीना के सपनो को शायद कोई जगह नहीं ऐसे मे उसकी उम्मीद अगर राहुल से है तो क्या गलत है आखिर राहुल सत्ता के सबसे बड़े ब्रांड अम्बेसडर है लेकिन पीतल नगरी का विदेशों से आने वाला अरबो रुपया जब मरजीना के आसू नहीं पोछ पाया तो राजनीती के धुरंदर राहुल भी १ कोसिस कर ले ...
मेरी कोसिस ये नहीं की मै मरजीना की गरीबी को आप तक पंहुचा कर उसका मजाक उडाऊ। में सिर्फ राहुल और उनकी पार्टी को यू पी के २०१२ मिसन को फ़तेह करने का सुझाव दे रहा हु लोक सभा चुनाव में आपने कलावती की गरीबी को सहारा बनाया इस बार मरजीना का दाव चलिए राहुल मै आपको इस लिए भी सुझाव दे रहा हु क्योकि दलित भोज के नाम पर आपके नेता गावो मै बिसलेरी की बोत्तले और हलवाई ले कर गए थे। उन पर विस्वास कम होता है आप जिम्मेदार है। इस लिए आप ही १ बार मरजीना से मिल रास्ता तैयार कीजिये / मरजीना की गरीबी जब आपकी जुबान से सुनाइ देगी तो शाएद उसके आसू कम हो जाय अंत मे राहुल १ राज की बात ये भी है की मरजीना जीना जानती है उसे आपसे किसी मदद की उम्मीद नही हँ अगर वो आप के कम आ गयी तो उसे ही खुसी होगी लेकिन ध्यान रखियेगा अपने २५ साल बाद मोरादाबाद में जीत दिलाने वाले सांसद अजहर को मत भेजिएगा क्या है की उन्हें मरजीना की गरीबी से ज्यादा परेसान गाव की गलिया व् गंदगी करेगी कही बीमार न पड जाय
राहुल आप समझे या नहीं लेकिन यही १ रास्ता आपको भाता है। महंगाइ के दौर में मरजीना ही आपकी विफलता को ढक सकती है शाएद मरजीना को भगवन ने इसी लिए बनाया हो............................................................
भुवन चन्द्र
मोरादाबाद
९४१२९२१२७१
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Sunday, February 14, 2010

पीतल नगरी का ताजमहल

आगरा के ताज महल को आपने जमी पर देखा होगा .लेकिन जरा इस ताज को भी देखो जो घर के उपर प्यार के अहसास को मुकाम तक पहुचाने की कोशिस कर रहा हे ये ताज की नक़ल बनावट से तो नहीं भावनाओ से जरूर शहाजहा के ताज को चिड़ा रही है महज एक लाख रूपये और एक साल की मेहनत से बने इस ताज के पीछे भी मोहब्बत की कसिस और महबूबा से किया वादा निभाने की ललक है कहानी हिंदी फिल्मो की तरह है मुरादाबाद के कुन्दरकी छेत्र मे रहने वाले छिंदा खंड सारी पत्नी के साथ आगरा घुमने गए मोहब्बत के ताज को देख पत्नी का मन भी प्यार मे मचल बैठा । पति से पूछ बैठी मेरे लिए क्या बनाओगेछीदा के सामने ताज था कह दिया ताज बनाऊंगा पत्नी ख़ुस हुई और पति पर विस्वास के साथ वापस लोट आई एक दिन वही पत्नी दुनिया से गुजर गयी बात १९६० की है छीदा को वादा यादआया पहले जमीन खरीदी फिर बदायु से कारीगर बुलाये गए और बन गया १ और ताज
मुमताज और शहजाह की मोहब्बत बड़े लोगो की हाई प्रोफाइल स्टोरी की तरह थी इस लिए aam logo की जुबान पर चिपक गयी छीदा और उनकी पत्नी छोटी की मोहब्बत आज भी जिन्दा है लेकिन आम आदमी को क्या अधिकार की मोहब्बत मे वो ताज की बराबरी करे? नतीजा सामने है कभी अरमानो की चादर लीये वादे को निभाने की इस ईमारत को खड़े रहने के लिए संघर्स करना par रहा है।
भुवन चन्द्र
मुरादाबाद
९४१२९-२१२७१
९९२४७९-61777

Saturday, February 13, 2010

mela

दोस्तों आपका स्वागत है मेलो की बात करे तो महाकुम्भ का दौर है लेकिन हम बदल रहे है / विस्तार से बात करेंगे बाद मै.................... भुवन