Friday, March 5, 2010

शरद जोशी का लापतागंज लापता है ............

 ..टी. वी . पर हास्य और सनसनी बेचने के इसे दौर में लापतागंज भले ही अपवाद हो सकता है | लेकिन आम आदमी की जिन्दगी की ये सच्चाई भी है...शरद जोशी की हास्य कहानियो से निर्मित सब टी.वी. की ये पेश कश अश्लील हास्य के दौर में सकून दे जातीहै|  मुकुन्दी , कछुवा , बिजी पांडे, मिस्री मौसी , और सरुली के किरदार हमें खुद के होने का जो अहसास कराते है | उसे आप कभी नहीं नकार सकते है | सिस्टम से लड़ते लापतागंज के लोग और एक दुसरे के साथ भारतीय जीवन जीते है | शरद जोशी ने जिस बेबाकी से लोगो को सामने रखा है ,वो अपने आप में १ लेखक की पैनी नजरो का होना दिखाता है, | आज के आधुनिक कहे जाने वाले इसे दौर में भला कोन इंकार करेगा की लापतागंज हमारे आस -पास नहीं है,|
लापतागंज को टी.वी. पर देखते हुए हेर एपिसोड अपने आस पास की घटना से जोड़ देता है |मध्यम वर्गीय परिवारों की समस्याए हो या फिर उनके विस्वास को जिन्दा होते देखना , हर किरदार का लोगो से जुड़कर अपनी बात रखने का तरीका इन कहानियो की ताकत है....केबिल टी.वी और नेट के इसे दौर में बच्चो को जब पंचतंत्र की कहानिया  पड़ने को न मिले तो लापतागंज १ उम्मीद जगाता है..... आपको जब भी मौका मिले १ बार लापता होते हुए शरद जोशी के इसे गंज को आप भी देखिये .......हास्य का असल मकसद शाएद यही मिल जाय|.........................................................................................भुवन चन्द्र